श्मशान बना आध्यात्म एवं सौन्दर्य का प्रतीक
पर्यावरण को हरा भरा रखने के लिये मुक्तिधाम को ही चुना हैं क्योंकि दाह संस्कार से जहरीली गैंसों का उत्सर्जन होता हैं | मुक्तिधाम भयावह स्थल समझा जाता हैं | सदियों से मानव की कल्पना रही हैं कि शवदाह के कारण भूत-प्रेत आदि के निवास आदि के बारे में समाज में फैली भ्रांतियों को दूर करने के लिये मैंने वर्क्षो, लताओं और औषधि युक्त पौधों को रोपित कर मुक्तिधाम के स्वरूप को बदलकर हरे भरे पार्क में विकसित किया हैं | जिसके कारण प्राकृतिक सुषमा,सौन्दर्य देखते बनता हैं | इस पर्यावरण को जीवित रखने के लघु प्रयास से लोगों को ओजस्वी प्रेरणा मिली हैं | जिसके परिणाम स्वरूप पोरसा के समीपस्थ भिण्ड जिले के कस्बे गोरमी एवं गोहद में भी इसी शैली के मुक्तिधाम विकसित किये जा रहे हैं
दाह संस्कार स्थल का चबूतरा, टीन शेड, एयर ड्राफ्टिंग सिस्टम (जो लकड़ी, कंडा,समय व् पैसा की बचत करता है |) आर.सी.सी. बैंच, लकड़ी कंडा कक्ष निर्माण, प्रतीक्षालय, मुंडन स्थल, और शव दाह स्थल पर पहुचने के लिए शव यात्रा मार्ग अलग से बनाना, हेण्डपंप, कक्ष, जनरेटर, शौचालय, महिला व् पुरूष मूत्रालय एवं पर्यावरण सौन्दर्यीकरण हेतु फुब्बारा के रचना, औषधीय पौधे, वृक्ष, लताये, शिव के प्रिय पुष्प, कई प्रकार के औषधीय पौधों से आकृति बनाना, भूतनाथ का मंदिर निर्माण |
लाँयंस मुक्तिधाम का मुख्य उद्देश्य शोकाकुल परिवार को शोक संवेदना भेजना हैं | एवं त्रयोदशी संस्कार (मुत्यु भोज) के बहिष्कार करने का सन्देश देती हैं | अपने सगे संबंधी परिचित अपरिचित अंतिम विदा देने आये लोग, जो दुःख में रहते हैं | या उदासी में रहते हैं | इसलिये ऐसा वातावरण और पर्यावरण बनाया गया हैं | जो शोंक को कम करे और अध्यात्मिक बल मिले| श्मशान में भयावह और सन्नाटे आदि अन्धविश्वास को समाप्त कर इसका सात्विक और शांत वातावरण के रूप में विकास करना हैं | मुक्तिधाम में अन्त्योष्टि, पर्यावरण, सौन्दर्यीकरण व्यवस्था का मूल उद्देश्य हैं |