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लावारिस लाश दाह संस्कार:

दिनांक 06.01.1995 की एक घटना है | एक गरीब परिवार गांधीनगर में रहता था | उसकी पत्नी की म्रत्यु हो गयी | पति बच्चे और पत्नी को छोड़कर भाग गया | लाश रातभर रखी रही | लेकिन कोई सगा संबंधी और मित्र नहीं आया | तब जाकर मैंने देखा कि पत्नी टी.बी. आदि रोगों से ग्रस्त थी | जाकर थाने में सूचना दी | टी.आई. साहब ने कहा कि आप समाज सेवी है | दाह संस्कार कराइये | मैंने कहा कि इसकी क़ानूनी कार्यवाही करें | फिर दाह संस्कार हो तो अच्छा है, तो उन्होंने कहा कि इसकी कोई जरुरत नहीं है | में दो पुलिस वाले दे रहा हूँ, उन्हें ले जाओ | इसके बाद स्वंय ने अर्थी तैयार कर लोगों से कहा कि कंधा तो दे दो | जिससे लाश को मरघट तक ले जाऊ | लेकिन कोई आगे नहीं आया | मैं उदास खड़ा देख रहा था कि मानव की मानवता कहीं कौने में सिकुड़ गयी है | ऊपर देखकर कहा कि वाह री दुनिया! मैंने हाथ जोड़कर निवेदन किया, काफी भीड़ थी, सभी देख रहे थे | तो मेरे शुभ चिंतक रक्षा समिति के दो-तीन बंधु निकलकर आये | फिर उक्त पार्थिव शरीर को कंधे पर रखकर जौटई रोड स्थित मरघट पर ले गए | लकड़ी कंडा आदि की व्यवस्था कर उस महिला का दाह संस्कार स्वंय डॉ. गुप्ता ने किया | शवों का दाह संस्कार खुले आसमान, तपती धूप, वर्षाकाल में अधजली लाश, फटे पुराने कपड़े, अस्थियों और राख के ढेर, कांटे, करीले, झाड़, टूटी हुई खोपड़ी, कुछ लोग बच्चो लो दफनाते है | चम्बल नदी किनारे होने से जंगली जानवर मरघट तक आ जाते है और दफनाये हुए बच्चो को निकालकर मांस खा जाते है और अस्थि पिंजर वही छोड़ जाते हैं | अधजले बांस, बामी, दीमक, मटके, कई प्रकार की गंदगी पड़ी रहती हैं | बरसात में गीली लकड़ी के प्रज्ज्वलित न होने की दशा में राल, चीनी से अग्नि नहीं जले तो मिटटी का तेल, पेट्रोल, टायर के टुकड़ों को जलाकर अग्नि प्रज्जवलित करके, तब दाह संस्कार पूर्ण होता था | इन सभी चीजो को देखकर डॉ. गुप्ता के अन्त: करण में पीड़ा हुई | तब उन्होंने ठान लिया कि भव्य मुक्तिधाम बनायेंगे |

शव यात्रा में आई सामग्री का प्रयोग :-

शव यात्रा में आने वाली सामग्री कफन, कलावा, रस्सी, बांस का उपयोग मुक्तिधाम निर्माण कार्य में किया जाता है जैसे के बांस की टटिया बनाकर, झाड़ू बनाकर, कफ़न, कपड़ो को काटकर उसे ढेरकर रस्सी बनाना, पेड़ पौधों से बांधना, शव के शत आये हुये पात्र मटके में पेड़ पौधें लगाना, मानव की राख को खाद बनाकर उपयोग करना |

लावारिस अनाथ लाश :-

दाह संस्कार हेतु लावारिस एवं अनाथ लाश के लिये लकड़ी कंडा नि:शुल्क व्यवस्था हैं | डॉ. गुप्ता ने आज तक साढे चार लाशो का स्वयं ने दाह संस्कार मुक्तिधाम में किया हैं |

पर्यावरण संरक्षण पद्र्ति द्रारा प्लेटफार्म :-

आज के दौर में इस प्लेट फार्म का विशेष महत्व हैं | इस प्लेटफार्म पर शवदाह किये जाने में कंडे, लकड़ी, समय और पैसे की बचत होती हैं | तर्पण, मुखाग्नि, कपाल क्रिया आदि जैसे दाह संस्कार से कोई वंचित न रह जाये | इस पद्र्ति से एयर ड्राफ्टिंग सिस्टम पर विशेष ध्यान रखा जाता हैं | साथ ही पर्यावरण एवं सुन्दरता पर दुष्प्रभाव न पड़े |

दाह संस्कार पर उपलब्ध सामग्री :-

      मुक्तिधाम में गर्मी, जाड़े, बरसात हर समय लकड़ी, कंडे, करब की पूरी, मान सरोवर गंगाजल, शवदाह की घर से लेकर मुक्तिधाम तक विडियोग्राफी, विद्वान् पंडित द्रारा अन्त्योष्टि यज्ञ, नाई व्यवस्था, चौकीदार, हवन सामग्री, दाह संस्कार स्थल को पुष्पों से सजाने की व्यवस्था हैं |

सत्संग हाँल :-

एक बड़ा सत्संग हाँल तैयार किया गया हैं | जिसमें भजन, प्रवचन, उठावनी, सत्संग, बैठक आदि के लिये उपयोग किया जाता हैं |

औषधीय पौधों से आकृति :-

ॐ, त्रिशूल, हे राम, ॐ नम: शिवाय, हरि शरणम्, स्वास्तिक, कलश,उक्त आकृति औषधीय पौधों से बनाई गयीं हैं | तुलसी वन तैयार हो रहा हैं | शव शुद्धिकरण स्थल, झरना फुव्वारा | जिसमें गोवर्धन पर्वत उठाते हुए गोवर्धन गिरधारी की मूर्ति की स्थापना, महाकाल का मन्दिर, प्याऊ |

औषधीय पौधें :-

      अर्जुन, अशोक, आंवला, बहेड़ा, नागदोन, ग्वारपाटा, रतनजोत,नारियल, तुलसी, मेंहदी, अजवाइन, दोना मरूआ, भांगरा, कचनार, कटेरी, बोगनबिलिया, खजूर, आम, अमलताश, पत्थर चिट्टा, सुदर्शन, गिलोय, शंखपुष्पी, बिलपत्र, अंजीर, करोंदा, अनार, हरसिंगार, गुलमोहर, कटहल, नागफनी, गांजा, धतूरा, आक, सत्यानाशी, शीशम, अमरुद, आदि एवं अनेक विदेशी प्रजाति के सुन्दर पौधें रोपित किये गये हैं |

आर्थिक व्यवस्था :-

शासन, प्रशासन, नगर पालिका, जनप्रतिनिधि, नगर, ग्रामीण, नर-नारी, बच्चे तन, मन और धन व् दान साम्रग्री से सहयोग देते हैं |

सुरक्षा रख-रखाव व्यवस्था :-

      मुक्तिधाम में सवैतनिक एक चौकीदार एवं एक माली की भी व्यवस्था हैं |

 

कर्म ही धर्म हैं | धर्म ही सेवा हैं | सेवा ही ईश्वर हैं |