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About MuktiDham

पोरसा |

लायंस मुक्तिधाम समिति पोरसा के अध्यक्ष डॉ. अनिल गुप्ता (माथुर वैश्य) के तत्वाधान में श्मशान के देखरेख हो रही है | मध्यप्रदेश के या अन्य प्रान्त में किसी तहसील स्तर पर इतनी सुन्दर व्यवस्था असंभव है | आँखों को सहसा यकीन नहीं होता है कि कोई मरघट ऐसा भी हो सकता है | कि जहाँ अपने-पराये किसी सगे संबंधी या दोस्त के पार्थिव शरीर को अग्नि समर्पित करने आये शोक संतप्त लोगो को आध्यात्मिक संबल मिले | आम तौर पर श्मशान डरावना; भयावह और नापाक जगह मन जाता है | जहाँ लोग रात तो क्या दिन में जाने की कल्पना से कांप उठते है | लेकिन लायंस मुक्तिधाम पोरसा जिला मुरैना म.प्र. का यह द्रश्य इन सभी धारणाओ के विपरीत हो गया है |

लायंस मुक्तिधाम के अध्यक्ष, समाजसेवी डॉ. अनिल गुप्ता (माथुर वैश्य) के द्वारा वर्ष 1992 में शुरू की गयी पहल प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप में हजारो का साथ लेकर संस्था के सहयोग से अथक म्हणत के बाद मुक्तिधाम उत्क्रष्ट, मनोहारी द्रश्य बन गया है |

श्मशान के निर्माण हेतु चिंतन :-

दिनांक 23.09.1992. को नगर के प्रबुद्ध जन गणमान्य लोग नागरिक की मंदिर में बैठक बुलायी|

जिसमें श्मशान के लिये जौटई रोड पर स्थित दो बीघा 1 बिस्वा मरघट की जमीन पड़ी है उस पर अतिक्रमण है | उस पर निर्माण के विषय में सभी लोगों की स्वीक्रति प्रदान की | इसके बाद डॉ. गुप्ता ने मुक्तिधाम के निर्माण एवं पूजन के विषय में चिंतन प्रारंभ किया |

श्मशान में संकल्प दिवस :-

      दिनांक 16.10.1995 को प्रतिष्ठित व्यक्ति श्री लखमीचन्द गुप्ता के निधन पर मै मरघट पहुँचा | वहाँ पड़ी हुई गंदगी का सफाई अभियान चलाया | लोग हँस रहे थे | कई आलोचना कर रहे थे | मैं अपने कार्य में ध्यानमग्न था | कुछ लोग चिंतन भी कर रहे थे | दाह संस्कार के अतिंम समय में कंडा द्रारा चिता को श्रधांजलि देते हैं | मैं भी इसी क्रम में लगा था | अचानक मेरे अन्त:करण में आवाज दी कि सबका सहयोग लेकर मुक्तिधाम बनवाने का कार्य लारो | मेरे हाथ में कंडा था | उसी वक्त चिता कि परिक्रमा देते हुये मैंने संकल्प लिया कि जब तक मरघट का निर्माण कार्य प्रारंभ नहीं होगा | तब तक दाड़ी नहीं बनाऊंगा |

शमशान की रूप रेखा :-

इसके कुछ दिन बाद महाकाल कि असीम कृपा से मरघट बनाने के लिए मैं प्रतिदिन चिंतन करने लगा | एक दिन पटवारी, तहसीलदार व एस.डी.एम. से मिलकर पेपर निकालकर नापतौल करवाने की कार्यवाही प्रारंभ की | लोंगों ने अतिक्रमण शांति ढंग से हटा लिया |इधर दाड़ी बड़ी होने लगी | तो लोंगों ने कई प्रकार की बातों और आलोचनाओं से सुशोभित किया |

पूजन निर्माण दिवस :-

दिनांक 18.01.1996 को वह क्षण आ गया | पूजन निर्माण के लिए शंखनाद नगर में हो गया | विद्वान पंडित द्रारा हजारों की संख्या में बंधु मरघट पंहुचे | पूजन निर्माण के कार्य का श्रीगणेश हुआ | तब डॉ. गुप्ता ने संकल्प पूर्ण होने पर श्मशान में दाड़ी बनवाई | और इस कार्य के सफल आयोजन पर हाथ जोड़कर सभी लोगों को कोटि-कोटि धन्यवाद दिया |

मुक्तिधाम कि योजना :-

दाह संस्कार स्थल का चबूतरा, टीन शेड, एयर ड्राफ्टिंग सिस्टम (जो लकड़ी, कंडा,समय व् पैसा की बचत करता है |) आर.सी.सी. बैंच, लकड़ी कंडा कक्ष निर्माण, प्रतीक्षालय, मुंडन स्थल, और शव दाह स्थल पर पहुचने के लिए शव यात्रा मार्ग अलग से बनाना, हेण्डपंप, कक्ष, जनरेटर, शौचालय, महिला व् पुरूष मूत्रालय एवं पर्यावरण सौन्दर्यीकरण हेतु फुब्बारा के रचना, औषधीय पौधे, वृक्ष, लताये, शिव के प्रिय पुष्प, कई प्रकार के औषधीय पौधों से आकृति बनाना, भूतनाथ का मंदिर निर्माण |

श्मशान का निर्माण :-

श्मशान का निर्माण तीन भागों में किया हैं- सत्यम, शिवम्, सुन्दरम् |

  • सत्यम स्थल –

पंचवटी स्थल का निर्माण (पांच पेड़-नीम, आम, पीपल, वट, पाखर, ओम की आकृति, स्वस्तिक की आकृति, कलश की आकृति पौधों द्रारा बनाई गयी हैं | पक्षियों के जल पीने के लिए जलकुण्ड, एकांत साधना स्थल), मृत्यु सत्य हैं, दाह संस्कार स्थल, मुंडन स्थल, लकड़ी कंडा कक्ष, प्रतीक्षालय कक्ष, आर.सी.सी. बैंचें |

चूँकि मुक्तिधाम में अन्त्योष्टि का अनुष्ठान शवदाह के द्रारा होता है | अग्नि को समर्पित मानव के मृत शरीर से कई प्रकार की जहरीली एवं घातक गैसों का उत्सर्जन होता हैं | जिसके कारण मनुष्य ही नहीं, अपितु समस्त प्राणियों के जीवन पर घातक प्रभाव पड़ता हैं | पर्यावरण प्रदूषण के कारण एक आसन्न संकट उत्पन्न हो गया हैं | मुक्तिधाम जैसे सर्वथा प्रदूषित स्थान को हरा भरा बनाकर जहरीली गैसों से प्राणी मात्र की सुरक्षा, एवं पर्यावरण का हरा भरा बनाना ही सत्यम स्थल कि शोभा का स्वरूप हैं |

  • शिवम् स्थल –

जय महाकाल का मंदिर, शुद्धिकरण हेतु स्नानागार, हेण्डपंप, सबमर्सिबल पम्प, पम्प मोटर कक्ष, विधुत न होने पर लाईट व्यवस्था हेतु जनरेटर, पुजारी कक्ष, पानी की टंकी, भूतनाथ के प्रिय पुष्प, आक, धतुरा, गांजा, भांग, मंजरी, गुलाब, लाल कनेर, सफेद कनेर, औषधियों के पौधे लगाये गये हैं |

  • सुन्दरम् स्थल –

सुन्दरम स्थल में शिव्मुक्तिद्हम वाटिका का रूप, चारों वेदों का चौराहा, के बीच में गोलाकार शिवलिंग के आकृति, दो बड़े घास मैदान, योग करने के लिए कक्ष, व्यायाम शाला, झूला, फिसलन पट्टी, युवाओं के लिए वैट लिफ्टिंग हेतु पाइप के व्यवस्था की गयी हैं | प्रात:काल नर-नारी बच्चे योग, व्यायाम करते हैं | पौधों से ऊर्जा प्राप्त कर उनका मानस पटल प्रफुल्लित होता हैं | प्रतिदिन मुक्तिधाम में करीबन 500 लोग भ्रमण करने आते हैं |

मुक्तिधाम का आयोजन :-

  • मुक्तिधाम में प्रतिवर्ष महाशिवरात्रि पर्व पर भस्म, पंचामृत, औषधी पौधें एवं पुष्पों से भूतनाथ का अभिषेक होता हैं |
  • होलिकोत्सव मनाया जाता हैं | भांग ठंडाई एवं प्रसाद का वितरण होता हैं |
  • वृक्षारोपण- वरिष्ठ अधिकारीगण, नेतागण, संतगण, महिला, बच्चे, मौलवी, फकीरों आदि से ऋतु अनुसार वृक्षारोपण कराया जाता हैं |
  • समय-समय पर सत्संग प्रवचन आदि का आयोजन किया जाता हैं |
  • यम चतुर्थी को दीपदान महोत्सव मनाया जाता हैं जिसमें पांच हजार, ग्यारह हजार दीपो की काली मंदिर से लेकर मुक्तिधाम तक लम्बी कतारें लगायीं जाती हैं | हजारों की संख्या में लोग पहुचकर अपने पूर्वजों की स्मृति में मुक्तिधाम पर दीपदान करते हैं | क्योंकि कुछ शास्त्रों में वर्णन हैं कि यम चतुर्थी को अँधेरी रात में दीपदान करने से चलकर आये हुये पितरो को वापिस जाने का मार्ग सरलता से दिख जाता हैं |
  • इसी दिन यमराज को जलांजलि के साथ तर्पण भी किया जाता हैं |

कर्म ही धर्म हैं | धर्म ही सेवा हैं | सेवा ही ईश्वर हैं |